एक राजा के कोई संतान नहीं थी। वह बड़ा दुखी रहता था कि मेरे बाद मेरे राज्य का कार्यभार कौन संभालेगा ।कौन इस सिंहासन पर बैठेगा । उसने अपने गुरु और मंत्रियों से विचार-विमर्श किया तो सबका मत यही मिला कि कोई योग्य पुरुष ही इस सिंहासन का उत्तराधिकारी हो सकता है । तब राजा ने सोच-समझकर एक योजना बनाई। उसने नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि कल जो व्यक्ति राजा के पास दरबार में सर्वप्रथम उपस्थित होगा उसे उत्तराधिकारी घोषित किया जाएगा। यह सुनकर नगर में कोलाहल मच गया। अगली सुबह सब राज दरबार में जाने के लिए निकल पड़े। राजा ने द्वार से दरबार तक पहुंचने के रास्ते में बहुत से सुख सुविधाओं की व्यवस्था की थी। जैसे- खाने-पीने और कपड़े की दुकाने ,मनोरंजन करने वाले और विश्रामगृह आदि सभी सुख सुविधाएं थी, जो मन को आकर्षित कर सकती थी लेकिन दुख की बात यह थी कि सब इन सुख-सुविधाओं में फंस कर रह गए । एक व्यक्ति ही साँझ होते ही राजा तक पहुंचा। राजा को उस व्यक्ति को देख बहुत प्रसन्नता हुई ।राजा ने पूछा - तुमको किसी भी वस्तु ने आकर्षित नहीं किया। उसने कहा- मैं आपके पास पहुंचने का उद्देशय लेकर चला था ।उसके आगे यह सब सुख त्याज्य थे । राजा को समझते देर नहीं लगी कि यही सच्चा उत्तराधिकारी है क्योंकि वह उद्देश्य के लिए अपना सुख भी छोड़ सकता है। यही प्रजा का वास्तव में पालन कर सकता है।
सत्य ही है हम अपने जीवन में जिस उद्देशय का निर्धारण करते हैं तो उस तक पहुंचने में बहुत सारी समस्याएं आती हैं । जब हम उन समस्याओं को पार कर जाते हैं तभी हम अपने उद्देश्य तक पहुंच सकते हैं। यह कहना बहुत आसान है पर उस पर चलना बहुत कठिन है क्योंकि ऐसा करने के लिए हमें अपने स्व को खोना पड़ता है और बहुत सारे आकर्षणों से बचना पड़ता है।
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