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माता कैकई

जिसको राम ने थामा हो उसे कोई नहीं गिरा सकता। सब कहते हैं माता केकई की वाणी में माता सरस्वती बैठी थी इसलिए उन्होंने वचन मांगे । मेरा हृदय यह कहता है कि माता कैकयी को अपने पुत्र राम के जन्म का रहस्य पता था । उन्होंने राम की ही सहमति से यह वर मांगा था ।किसी को तो जगत कल्याण के लिए कष्ट अपने ऊपर लेना ही था। वह राम की विजय यात्रा की प्रथम सीढ़ी बनी और मां को तो अपने बच्चों को विजय होते देखकर ही आनंद आता है । माता कैकई ने अपने पुत्र की विजय के लिए सहर्ष प्रथम सोपान बनना तय कर लिया था।

दूसरा पक्ष जो मेरे ह्रदय को छूता है । वह यह है कि खुद बुराई लेकर उन्होंने भरत को विजयी बना दिया । अगर वह ऐसा ना करती तो क्या भरत की भाई के प्रति भक्ति संसार के सामने आती । राम के साथ भरत का भी नाम लिया जाता । भरत में भी तो माता कैकयी के ही संस्कार थे । भरत ने माता से ही तो सीखा था राम प्रेम। पूरे संसार की उलाहना लेना और खासकर अपने पुत्र की उलाहना लेना सबसे कष्टकारी होता है इसलिए जीवन में अगर आपकी माता से कोई गलती हो जाए तो एक बार अपने विचारों को दृढ़ता देने से पहले यह जरूर सोचेगा कि वह आपका क्या हित कर गई। इसलिए माता कैकई को मेरा हृदय शत-शत नमन करता है।



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