top of page

कहानियां

यह कहानियां स्वरचित नहीं है फिर भी इन में व्यक्त विचार मन को बल देते हैं।

एक बार ब्रह्माजी ने मनुष्यों को अपने पास बुलाकर पूछा - तुम क्या चाहते हो ? मनुष्य ने कहा- मैं उन्नति करना चाहता हूं , सुख शांति चाहता हूं और चाहता हूं कि सब लोग मेरी प्रशंसा करें । ब्रह्मा जी ने मनुष्य के सामने दो थैले रख दिए। वह बोले - इन थैलों को ले लो । इनमें से एक थैले में तुम्हारे पड़ोसी की बुराइयां भरी है। उसे पीठ पर लाद लो । उसे सदा बंद रखना। ना तुम देखना और ना दूसरों को दिखाना। दूसरे थैले में तुम्हारे दोष भरे हैं उसे सामने लटका लो और बार-बार खोल कर देखा करो ।मनुष्य ने दोनों थैले उठा लिए लेकिन उससे एक भूल हो गई । उसने अपनी बुराइयों का थैला पीठ पर ला दिया और उसका मुंह कसकर बंद कर दिया । अपने पड़ोसी की बुराइयों से भरा थैला उसने सामने लटका लिया ।उसका मुंह खोलकर उसे देखता रहा और दूसरों को भी दिखाता रहा । इससे उसने जो वरदान मांगे थे उलट हो गए । वह अवनति करने लगा । उसे दुख और अशांति मिलने लगी। सब लोग उसे बुरा बताने लगे।

सत्य ही है हम दूसरों के दोषों को देखने में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि स्वयं को भूल जाते हैं। अगर हम स्वयं के दोषो को सुधारने में समय दें तो हम उन्नति के पथ पर अग्रसर हो सकते हैं।


8 views0 comments

Recent Posts

See All

समदृष्टि

आज कविता सुबह-सुबह कार्य में व्यस्त थी क्योंकि आज उसकी सासू मां तीर्थ कर लौट रही थी।कविता के दरवाजे की घंटी बजी तो वह हाथ का काम छोड़ कर दरवाजा खोलने जाने लगी उसने सोचा सासू मां आ गई लेकिन जब तक वह दर

bottom of page