हमारे पिता हमेशा समझाते थे कि जो माता-पिता और सास ससुर की सेवा करता है उसे किसी भी तीर्थ जाने की आवश्यकता नहीं होती सभी देवी देवता उस द्वार की रक्षा स्वयं करते हैं मैंने उनके इस भाव को बहुत ही मन से निभाया परंतु अब उसका महत्व समझ में आया हर तीर्थ पर पहुंचने के लिए हमें कठिन रास्तों से निकलना पड़ता है । अपने बड़ों की सेवा के लिए भी हमें कई मनोभाव परिस्थितियों से निकलना पड़ता है क्योंकि उनके मनोभाव उम्र के साथ बहुत कठिन होते जाते हैं जिसे समझना हमारे लिए बहुत कठिन हो जाता है परंतु जो इन सब परिस्थितियों का सामना करते हुए पार निकलता है वही ऊंचाइयों पर पहुंचता है। सेवा का महत्व तभी तक है जब तक हम उसे निष्काम भाव से करते हैं। सेवा करते हुए सामने वाले से किसी भी भाव की आशा न रखें।
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