चारों तरफ शोर तो बहुत है पर कहीं ना कहीं एक सन्नाटा छाया हुआ है। ऐसे ही हमारे हृदय में है तो बहुत कुछ पर मुख पर मौन ही है । कुछ ना कह पाने की अक्षमता । हमारे बड़े हम से ही वही कहते हैं जो उन्होंने अपने जीवन के अनुभव से सीखा पर हम उसे सुनना नहीं चाहते । बड़ों के जीवन के किस्से अनुभव सुनने का मजा ही कुछ और है पर हमारे पास समय नहीं है । अब हमें शायद शब्दों को नाप तोल कर बोलने की कला आनी चाहिए । जिससे आधा तो मन में ही रह गया क्योंकि ज्यादा बोला तो कोई सुनेगा नहीं । ऐसे ही आज की पीढ़ी है वह हमें बदलते हुए वातावरण के अनुसार कुछ समझाना चाहे तो उसे हम सुनना और समझना नहीं चाहते । इसलिए कहने को तो बहुत है पर अंदर डर है कि कहीं मुंह से बोला तो कोई समझेगा नहीं या तो फिर पलट कर डांट देगा। हालांकि घर में चार सदस्य हैं आपस में बात करने के लिए फिर भी सन्नाटा है मौन का क्योंकि हर सदस्य ने अपने आपको अपने तक सीमित कर लिया है । अगर आगे बढ़ना है तो दूसरों को बिना टोके सुनने की क्षमता होनी बहुत जरूरी है।
मौन तो वाणी का नहीं हृदय का होना चाहिए । यदि आपके अंदर ही विचार सीमित होंगे तो बाहर भी वही निकलेंगे । आप की वाणी आपके व्यक्तित्व को परिलक्षित करती है इसलिए हमें अपने अंदर के शोर को पहले शांत करना होगा इसके लिए अपना ध्यान सही दिशा में केंद्रित करें।
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