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सुनहरे पल

हमारा स्कूल घर से बहुत दूर था । हमें काफी पैदल चलना पड़ता था और दो बार ऑटो भी बदलना पड़ता था । हमें आने जाने के लिए बड़े भैया से पैसे मिलते थे और उसका खर्च लिखकर अगले दिन भैया को दिखाना होता था । उसी के अनुरूप हमें उस दिन के पैसे मिलते थे । यह घर का कड़ा अनुशासन था । खर्च करने पर पाबंदी नहीं थी परंतु उसको सत्यता से बताना जरूरी थ