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समदृष्टि

Writer's picture: Sangeeta AgrawalSangeeta Agrawal

आज कविता सुबह-सुबह कार्य में व्यस्त थी क्योंकि आज उसकी सासू मां तीर्थ कर लौट रही थी।कविता के दरवाजे की घंटी बजी तो वह हाथ का काम छोड़ कर दरवाजा खोलने जाने लगी उसने सोचा सासू मां आ गई लेकिन जब तक वह दरवाजे तक पहुंचती किसी के गिरने और चीखने की आवाज आई। कविता का मन भय से कांप उठा कि कहीं उसकी सासू मां ही तो नहीं गिर गई हैं ।उसने दरवाजा खोला तो देखा कूडा लेने वाली चाची जमीन पर गिरी हुई दर्द से कराह रही हैं ।उनकी आवाज सुन सभी पड़ोसी बाहर आ गए पर सब खड़े थे। किसी ने उनके लिए कुछ नहीं किया पर कविता से यह ना देखा गया क्योंकि दरवाजा खोलने से पहले उसे एक अजीब सा दर्द महसूस हुआ था। उसने अपने पति को आकर सारी स्थिति बताई तो उन्होंने कहा उन्हें इलेक्ट्रोल पिला दो और घुटने पर दर्द का स्प्रे कर दो तब तक मैं उनके बेटे को बुला लेता हूं ।कविता ने वैसा ही किया और थोड़ी देर उनके पास ही खड़ी रही जब तक वह उठने और चलने लायक नहीं हो गई और उनका बेटा नहीं आ गया। कूडा उठाने वाली चाची सोचकर कविता के मन मे भी औरों की तरह एक बार सोच आई थी परंतु उसने सोचा अगर मेरी सास भी कहीं गिर गई होती तो उनकी भी तो कोई सहायता करता। यही संतोष था उसके मन में।

सत्य है अगर हम निष्काम भाव से किसी की सेवा ना भी कर पाए तो भी परायो में अपनों को देखकर ही सेवा कर ले। मां तो मां होती है फिर चाहे वह किसी की भी हो।

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