"यह वचन सुनते ही रावण को क्रोध आ गया, परंतु मन में उसने सीता जी के चरणों की बन्दना करके सुख माना।"
अरण्यकांड ,पेज नंबर 565,
दोहा 28
रावण को अपनी मृत्यु श्री राम के हाथों ही चाहिए थी इसलिए उसने सीता रूपी शक्ति का हरण किया , नहीं तो वह लंका तक कैसे पहुंचते । उनके वनवास का तो मात्र 1 साल ही शेष रह गया था । उसने सीता माता का हरण करके राम को अपने वध के लिए ललकारा था।
जीवन में जो परिस्थिति देखने में जितनी भी विषम दिखे। यह याद रखिएगा अगर वह पार कर गए तो उतना ही बड़ा सुख मिलेगा।
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