श्रीरामचरितमानस अमृत का अथाह सागर है । जितनी बार हम उसका अध्ययन करते हैं । उतनी ही बार प्रेम रूपी और भाव रूपी मोती खोज लेते हैं । ऐसे मोती जो आपका जीवन में मार्गदर्शन करते हैं और दुख के समय आप को सांत्वना भी देते हैं । ऐसे ही कुछ मोती रामचरितमानस के अध्ययन के समय हमें भी मिले। वहीं मोती आपके साथ बांट रही हूं।
" श्री रामचंद्र जी ने कहा - मुखिया मुख के समान होना चाहिए जो खाने पीने को तो एक है परंतु विवेक पूर्वक सब अंगों का पालन-पोषण करता है। "
अयोध्या कांड पेज न- 52 1
मुखिया मतलब परिवार का पालन पोषण करने वाला । यह उसका कर्तव्य हो जाता है कि वह परिवार के हर सदस्य की आवश्यकता का ध्यान रखें और अपनी सामर्थ्य के अनुसार उसे पूरा करें और अगर किसी की इच्छा पूरी ना करने योग्य हो तो उसे इस तरह समझाएं जिससे उसे एहसास हो जाए कि इसकी उसको आवश्यकता नहीं है । परिवार के सदस्यों की गलत बात ना मानना भी आपका कर्तव्य है। परिवार रूपी गाड़ी तभी सही दिशा में जाती है जब उसका चालक समझदार हो और विवेकपूर्ण हो।
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