जीवन में आपको बहुत से मार्ग मिलते हैं चलने के लिए आप उनमें से कोई भी रास्ता चुन लेते हैं अपना जीवन काटने के लिए परंतु पथ प्रदर्शक वह होता है जो अपने पथ का निर्माण खुद करता है।
खुद के पथ का निर्माण करना सरल नहीं होता क्योंकि आगे आपको कुछ दिखाई नहीं देता । हमारे विचार ,आत्मबल और दृढ़ निश्चय ही हमारे साथी होते हैं और यही पथ प्रदर्शक के औजार भी होते हैं जिससे वह अपने पथ का निर्माण करता है।
मार्गदर्शक को हमेशा अकेले ही चलना होता है । बाकी सब उसका अनुसरण कर सकते हैं स्वयं को मिटा कर ही कोई किसी को रोशनी दे सकता है ।मार्गदर्शक को अपने ऊपर सबसे ज्यादा ध्यान देना होता है ।
उसे संभालने वाला कोई नहीं होता है उसे खुद गिरना है और खुद ही उठना है।
जो व्यक्ति अपने अंदर की लौ को जलाकर रखता है वही किसी के मार्ग का दर्शन कर सकता है और मार्गदर्शक बन सकता है।
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