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आश्रम

परिवार की जिम्मेदारी कभी खत्म नहीं होती लेकिन स्वाभाविक रूप से जिम्मेदारी खत्म होने पर हमें परिवार से अलग कुछ और कार्य में संलग्न होना चाहिए । आप ने अपने बच्चों को तो संस्कार और शिक्षा देकर कर समर्थ बना दिया । वह अपना पालन पोषण करने में समर्थ है तो आप अपना अनुभव अपने पास क्यों रखना चाहते हैं ।सेवानिवृत्त होने के बाद भी हम अपना जीवन सार्थक कर सकते हैं।

वर्तमान समय में हमारे समाज में बहुत से ऐसे आश्रम और धर्मगुरु हो गए हैं जिनके पास हम जाना और सुनना पसंद करते हैं । वहां हम हमेशा कुछ लेने जाते हैं अर्थात मन की शांति खोजने जाते हैं लेकिन शायद खोज कर नहीं ला पाते। मेरे विचार में लेने से ज्यादा देने में मजा है हमारे समाज में ऐसे संस्थान भी हैं जो गरीबों ,वृद्धों, मानसिक रूप से परेशान व्यक्तियों को और अनाथो को संरक्षण देते हैं । हमें एक आयु के बाद उनसे जुड़ जाना चाहिए या व्यक्तिगत रूप से अपने आप समाज की सेवा ले लेनी चाहिए । हम अपनी सेवा आर्थिक ,शारीरिक और मानसिक रूप से दे सकते हैं ।अपनों के लिए तो हर कोई करता है । दूसरों के लिए करने में जो आत्मसंतुष्टी मिलती है ।उसकी कोई थाह नहीं है ।धर्मशास्त्र पढ़ने से लाभ नहीं देते उनको खुद अनुसरण करके अपनों और समाज की वृद्धि में सहायक हो तभी आनंद देते हैं । हम सब सेवानिवृत्त व्यक्ति मिलकर समाज को एक नई दिशा प्रदान कर सकते हैं।