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अहंकार

Writer's picture: Sangeeta AgrawalSangeeta Agrawal

एक बार नारद जी को अहंकार हो गया कि विष्णु जी का मुझसे बड़ा भक्त कोई नहीं है ।वह विष्णु जी के पास गए और बोले प्रभु मै ही आपका सबसे बड़ा भक्त हूं । विष्णु जी ने कहा नहीं मेरा सबसे बड़ा भक्त पृथ्वी पर है। एक साधारण सा मोची जो दिन-रात अपना काम करता है और मेरा स्मरण करता रहता है । नारद जी बोले इसमें क्या बड़ी बात है मैं भी तो लेता रहता हूं । विष्णु जी बोले नारद क्या तुम मेरा एक काम करोगे । नारद जी बोले जी प्रभु जरूर करूंगा । विष्णु जी बोले यह कटोरा जल से पूरा भरा है इसे महादेव जी को दे आओ पर ध्यान रहे इसमें से एक भी बूंद टपक ना जाए नहीं तो अनर्थ हो जाएगा ।नारद जी बोले इसमें क्या बड़ी बात है अभी आपका यह काम हो जाएगा।बिना रुके कटोरा लेकर चले और महादेव के पास उसे पहुंचा दिया ।बड़े प्रसन्न होकर विष्णु जी के पास पहुंचे प्रभु आपका काम हो गया ।विष्णु जी ने पूछा इस कार्य को करते हुए तुमने कितनी बार मेरा नाम लिया नारदजी स्तब्ध रह गए ।प्रभु मैंने आपका नाम एक बार भी नहीं लिया मेरा पूरा ध्यान तो इस बात पर लगा रहा कि कटोरे मे से बूंद ना टपक जाए । नारद जी समझ गए प्रभु क्या समझाना चाह रहे हैं।

बहुत तपस्या के बाद ही हमें कोई पद प्राप्त होता है लेकिन अपने अहंकार के कारण हम वह स्थान खो देते हैं और फिर से हमें उसी यात्रा को प्रारंभ करना पड़ता है।


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