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आलोचक

निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय,

बिना पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।

-कबीर दास जी

निंदक अर्थात "आलोचक"। एक आलोचक का आपके जीवन में होना बहुत आवश्यक है । यह आलोचक ही हमें अपने मार्ग से भटकने नहीं देता है । आलोचना को भी सकारात्मक रूप से लें, अगर आपको अपनी गलती महसूस हो तो उसे सुधारें, नहीं तो उसे अनसुना कर दें ।जब तक हमारे सामने विपक्ष ना हो , तब तक कोई भी काम करने में उत्साह नहीं होता। आलोचक हमें हमेशा सजग रहने की प्रेरणा देता है।

आलोचना को कभी अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए। आलोचकों को समानांतर मार्ग की तरह लेना चाहिए, जो हमेशा हमारे साथ चलेंगे और हमें मार्ग से उतरने नहीं देंगे । हमारे जीवन में अच्छाई और बुराई का सामान महत्व होता है| जैसे - गुलाब के पेड़ में इतने कांटों के होते हुए भी गुलाब की सुंदरता व महक कम नहीं होती है।


 
 
 

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